घनघोर घटा काली घिर आई
बहने लगी हवा पुरवाई
बादल में बिजली चमकाई
मतवाली बरखा ऋतु आई
छम छमा छम बरखा आई।
झम-झम कर बूंदे छहराई
सोंधी खुशबू माटी से आई
भीग चुनरिया तन लपटाई
महक उठी देह महुआई
छम छमा छम बरखा आई।
अमृतघट प़ी धरती मुस्काई
कोयल ने मीठी तान सुनाई
झूला -झूल रही तरुनाई
मीत मिलन की बेला आई
छम छमा छम बरखा आई।
मेंढ़क ने मेघ मल्हार लगाई
इन्द्रधनुसी छटा लहराई
मिटी उमस पवन ठंडाई
मतवाली बरखा ऋतु आई
छम छमा छम बरखा आई।
पिहु-पिहु पपिहा ने धुन गाई
कजली खेतो में लगी सुनाई
मस्तानी वर्षा ऋतु आई
छम छमा छम बरखा आई।
सुजानगढ़
१५ जून,2010
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
१५ जून,2010
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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