विक्टोरिया में
मोर्निंग वाक करके
हम शर्मा की दुकान पर
आकर बैठ गए
सुबह के नाश्ते में
गर्म जलेबी और
समोसों के साथ
चाय का घूँट लेने लगे
तभी एक दुबली पतली
काया वाली औरत
बच्चे को गोद में लिए
बच्चे को गोद में लिए
हमारे सामने आकर
खड़ी हो गई
वो टुकुर-टुकुर हमारी
तरफ देख रही थी
उसकी आँखों में एक
याचना थी
किसी ने कहा
कितनी बेशर्म है
सामने छाती पर
आकर खड़ी हो गई
हमने हटाने के लिए
बचा-खुचा उसकी तरफ
बढ़ा दिया
वो हाथ में लेकर
एक कौन में चली गई
बच्चे को गोदी से उतार कर
उसके माथे पर हाथ फेरते हुए
खिलाने लगी
बढ़ा दिया
वो हाथ में लेकर
एक कौन में चली गई
बच्चे को गोदी से उतार कर
उसके माथे पर हाथ फेरते हुए
खिलाने लगी
हमने महसूस किया
उसकी आँखों में
अब याचना नहीं
एक तृप्ति का भाव था।
उसकी आँखों में
अब याचना नहीं
एक तृप्ति का भाव था।
कोलकता
६ जून,२०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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