Tuesday, October 26, 2010

चाँदनी रात


चाँदनी रात में
तुम छत पर खड़ी
अपने बालों को संवार रही थी

मैं पढ़ रहा था
लेकिन नजर बार -बार
तुम्हारी तरफ उठ रही थी

तुमने मोनालिसा की तरह
मुस्करा कर पूछा -
क्या देख रहे हो ?

मैंने कहा -
तुम्हारी शोख अदाओं को
जिन्हें देख सितारे भी
मदहोश हो रहें हैं

चाँदनी भी शरमा कर
अपना मुँह  बादलों में
छिपा रही है 

मेरी तो बात ही क्या है 
आज तो चाँद भी तुमको देखने
जमीन पर आना चाहता है

तुमने  लज्जाकर
दोनों हाथों  से  अपने
मुँह को ढाँप लिया

मानो मेरी
बात को सहज ही
स्वीकार कर लिया। 


कोलकत्ता
२५  अक्टुम्बर, २०१० 
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Saturday, October 23, 2010

पिया मिलन री रुत आई (राजस्थानी कविता)





मालण करदे म्हारा सोळा सिणंगार ऐ
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री 

चंपा रे फूलां रो बणवादे म्हारो गजरो ऐ
चोटी तो गुथंवा दे बेला फुल री 
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री 

नौलख तारां स्यूं जङवा दे म्हारी कांचली ऐ
टूकी तो लगवा दे सूरज-चाँद री
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री 

 इंद्रधणक रे रँगा स्यूं रंगवादे म्हारी चुनडी ऐ
गोटा में लगवा दे आभा बिजली री 
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री  

कजरा रे बादल रो सरवादे म्हारे काजलियो ऐ
टिक्की तो लगवा दे धूजी नखत री
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री|

चन्द्र -किरण रो बनवादे म्हारो चुड़लो ऐ
सूरज री किरणा सूं नोलख हार री
म्हारे पिया मिलन री रुत आई री। 


कोलकत्ता
२२ अक्टुम्बर,२०१०

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

Friday, October 1, 2010

स्पर्श



शिशु के बदन पर माँ के 
हाथ का ममतामयी स्पर्श

प्रणय बेला में नववधू के
हाथ का रोमांच भरा स्पर्श

पेड़ो पर झूलती लताओं का 
आलिंगनपूर्ण स्पर्श

पहाड़ों पर मंडराते बादलों का 
प्यार भरा स्पर्श

हँसती खिलखिलाती नदी  का
 सागर में समर्पण  का स्पर्श

गुलशन में गुनगुनाते भंवरों  का 
 फूलों से मधुमय स्पर्श

मानसरोवर के स्वर्णिम कमलों  पर
 तुहिन कणों का स्पर्श

दुनियां के कोमलतम
     स्पर्श की कहानी कहते हैं। 

कोलकत्ता
१ अक्टुम्बर, २०१०
(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )