बणी काजळी एक बादळी
दूर खेत रे मायं जी
पुरवाई री पून चालगी
पुरवाई री पून चालगी
रिमझिम मैह बरसावै जी
बेलां री जोड़ी ने लेयर
छैल खेत में चाल्यो जी
मीठी बाणी मरवण बोले
छेलो तेजो गावेजी
कोयल गावे, बुलबुल फुदके
मोरयों छतरी ताणे जी
पंछीङा गाछां पर बैठ्या
मधरा गीत सुणावे जी
काची-काची कोंपल फूटी
धरती रो रंग निखरयो जी
हरियल बूंटा लेहरां लैव
मरवण करे निनाण जी
अलगोजा खेता में बाज्या
गौरी कजली गावै जी
बिजल्यां चमके, बिरखा बरसे
ळाटण री रूत आई जी
मैह मोकळो अबकी बरस्यो
घणे चाव धरती जोती
ओबरियो अबकै भरस्यां
मिज्याजण गौरी बोली
गुंवार मोठ के फल्यां लागगी
सीट्या कूं-कूं लाग्यो जी
काचर,बोर,मतीरा पाक्या
चुनड़ सिट्टा मोरे जी
पीळा- पीळा बोर मोकळा
लाग्या झाड़ी ऊपर जी
मठ काचरिया मीठा-मीठा
खावण री रुत आईजी
भर कटोरो छाछ-राबड़ी
मरवण भातो ल्याईजी
बाजरी री रोटी ऊपर
बाजरी री रोटी ऊपर
गंवार फली रो सागजी
खोल छाक जिमावण लागी
मेहँदी वाळा हाथां जी
ढोळो गास्यो भूल गयो
निरख चाँद सो मुखड़ो जी।
कोलकत्ता
८ नवम्बर, 2010
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
मेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
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waah sirji waah...."ek badali" padh kar mera mn prashan huya. thanks & pls keep writing!
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