Thursday, June 30, 2011

कृष्णा को जगाओ

                                            
मेरा कृष्णा सोया है
आओ उसे जगायें |

भाई सूरज इस खिड़की
से अन्दर आओ |

मेरे कृष्णा को
प्यार से जगाओ |

भाई पवन इस दरवाजे
से अन्दर आओ |

मेरे कृष्णा को
सहलाकर जगाओ |

भाई पंछी मुंडेर से
निचे उतर आओ |

मेरे कृष्णा को
गीत सुनाकर जगाओ |

देखो देखो
कृष्णा उठ रहा है |

किरणों  का सत्कार,
पवन   का आभार,
पंछी को   है  प्यार |


कोलकत्ता
३० जून,२०११

Saturday, June 18, 2011

बेटा और बेटी

बेटा 
जब बड़ा
 हो कर आसमान में
     उड़ान भरता है 
तो माँ-बाप
सोचते है
 काश !
आसमान थोडा
   और ऊँचा होता। 

बेटी
जब बड़ी
हो कर पँख
 फङफङाती है तो 
 माँ - बाप
 सोचते है
 काश !
घर की दीवारे
 थोड़ी और ऊँची होती।

कोलकत्ता
१७ जून, २०११ 

[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]

Wednesday, June 15, 2011

धौरावाळो देश (राजस्थानी कविता)

                                  

                                         सगळा रौ शिरमौर म्हारो धौरावाळो देस जी 

सालासर मे बालाजी रो मेळो लागै भारी जी
खाटूवाला श्याम धणी ने सारी दुनिया ध्यावै जी 
मेहंदीपुर रे बालाजी रे जात झङूला लागै जी
रामापीर ने रामदेवरा सगली जातां धौके जी  

                                           सगळारौ शिरमौर म्हारो धौरावाळो देस जी। 

श्रीनाथ में गोविन्दजी रे छप्पन भोग लगावै जी
झुंझुनू में राणी सती रे चून्दङ भक्त चढ़ावै जी 
रणकपुर में जैनमंदिर री शोभा अति विशाल जी
देशनोक में करनी  माँ रा दर्शन प्यारा लागै जी 

                                           सगळारौ शिरमौर म्हारो धौरावाळो देस जी। 

हवामहल ओ जंतर- मंतर जयगढ़ किला जयपुर जी 
सूफी संत री दरगाह प्रसिद्ध अनासागर अजमेर जी   
जोधपुर रो किलो भारी उम्मेद भवन मंडोर जी
उदयपुर झीलां की नगरी गढ़ लूंठो चितौड जी  

                                          सगळारौ शिरमौर म्हारो धौरावाळो देस जी।  

हल्दीघाटी वीरां री भूमि विजय स्तम्भ गर्वीलो जी
तीर्थराज पुष्कर में नामी बिरमा जी रो मंदिर जी
आबू के पहाङां में ऊँचो दिलवाडा रो मंदिर जी
उदयपुर में एकलिंगजी गणपति जी रणथम्बोर जी 

                                              सगळारौ शिरमौर म्हारो धौरावाळो देस जी। 


कोलकत्ता            
१४ जून,२०११

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित  है )

Wednesday, June 8, 2011

सयाना गाँव

  
                                       

तालाब जिसमें तैरते थे,
वो भी कब के पट गए 
      झेल -झेल  प्यास सारे
     कूए कब के सूख गए

पीपल औ बरगद सारे
धीरे धीरे सुख गए 
      खेत ओ खलिहान सूने
    बिन हल बैलों के हो गए

बँट गए खेत सभी
आँगन दीवारें खिंच गयी
            बँट गया गाँव सारा
      प्यार मोहबत घट गयी

कुम्हारों के बास में
एक ठेका खुल गया
      पीकर किसी के घर घुसा
          उसका सीर फट गया

ढोर किसी के खेत में
चरते -चरते घुस गए
               बात इतनी बढ़ गयी
           लट्ठ आपस में चल गए

राजनीत्ति की डायन अब
      गांवो में भी घुस गई 
                     पैसों की बर्बादी हुई
              आपस में रंजिस बढ़ गई                                                         

गाँव में जब जाकर देखा
गाँव शहर को भाग रहा 
             मुझको सब अजाना लगा
                     गाँव सयाना हो रहा।

कोलकत्ता
८ जून,२०११
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(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )