तुलसीदासजी ने रामायण में
मांडवी के त्याग और विरह
वेदना का उल्लेख नहीं किया
उन्होंने केवल सीता के त्याग
और लक्ष्मण के भ्रातृ प्रेम का
ही प्रमुखता से वर्णन किया
मैथली शरण गुप्ता ने भी
साकेत में मांडवी के त्याग
को महत्त्व नहीं दिया
को महत्त्व नहीं दिया
उन्होंने केवल उर्मिला की
विरह वेदना का ही साकेत
में उल्लेख किया
सीता को तो वन में रह कर भी
अपने पति के साथ रहने का
अवसर मिला
लेकिन मांडवी को तो अयोध्या
में रह कर भी पति के सामीप्य
का सुख नहीं मिला
भरत चौदह साल तक परिवार
से दूर जंगल में पर्ण कुटी
बना कर अकेले रहे
फिर मांडवी के त्याग को
सीता के त्याग से कमतर
क्यों आंका गया ?
मांडवी की विरह वेदना को
उर्मिला की विरह वेदना से
कमतर क्यों समझा गया ?
एक दिन फिर कोई
तुलसीदास जन्म लेगा
फिर कोई मैथली शरण आयेगा
जो मांडवी के दुःख दर्द को
नए आयाम और
नए अर्थों में लिखेगा।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]