इंसान वर्तमान में नहीं
भविष्य में जीता है और
आने वाले कल की चिंता
सबसे पहले करता है
मानव को प्रकृती ने
खुले हाथों से दिया है
काश ! हम सब मिलझुल कर
दुनियाँ में रह पाते
दुनिया से इस विषमता
को मिटा पाते।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]|
इसी कारण पक्षियों में
आज भी समानता है
और इन्सानों में अमीर
गरीब जैसी विषमता है
गरीब जैसी विषमता है
मानव को प्रकृती ने
खुले हाथों से दिया है
सबके लिए समान
रूप से दिया है
रूप से दिया है
काश ! हम सब मिलझुल कर
दुनियाँ में रह पाते
दुनिया से इस विषमता
को मिटा पाते।
[ यह कविता "एक नया सफर " पुस्तक में प्रकाशित हो गई है। ]|
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