Friday, December 13, 2013

म्हारो गाँव (राजस्थानी)


भायळा सागे गुवाड़ में
गेड्या दड़ी खेळता
चाँद के सैचन्नण चांनणै
लुक मिंचणी खेळता

भूख लागती जणा 
कांदो रोटी खावंता 
ऊपर स्यूँ भर बाटको
छाछ-राबड़ी पीवंता 

पौशाळ में पाटी बड़ता स्यूं
बारखड़ी लिखता
छुट्टी हुयां स्यूं पेली सगळा
पाड़ा बोलता

संतरे वाली फाँक्या
सगळा बाँट" र खांवता  
दूध री गिलास मलाई
घाळ" र पींवता 

जाँवण्या भरी रेंवती
दूध अर दही स्यूं
पौल भरी रेंवती  
काकड़ी र मतीरा स्यूं

गोबर रै गारा स्यूं लिपता
घर का आंगणा
होळी-दियाळी मांडता
गेरू-हिरमच रा मांडणा। 

सियाळा में पड़ती ठंड
जणा सुहाती तावड़ी
थेपड़यां थापण आंवती
मांगीड़ै री डावड़ी।

गोबर का गारा स्यूं लीपता
घर का आंगणा
होळी-दिवाळी मांडता
गेरू-हिरमच का मांडणा।



 [  यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गयी है।  ]





3 comments:

  1. Maine pada aap shree SitaRamji Dadhich Sujanghar wale ko yaad kar rahe the ..Wo indino Mumbai Main hai ...

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  2. sitaramjidadhich@gmail.com ....

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  3. बहुत ख़ुशी हुयी आप से श्री सीताराम जी दाधीच कि जानकारी पा कर। कृपया अपने बारे में मुझे कुछ जानकारी दे तो मुझे और अधिक ख़ुशी होगी। आप मेरे ईमेल पर भी मुझे सन्देश दे सकते --kankanibp@gmail.com

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