Saturday, March 5, 2016

जिन्दगी वही थी

जिस समय को हमने
एक दूजे के साथ जिया
जिन्दगी वही थी

भले ही उन लम्हों को
हमने हँसते हुए बिताया
या एक दूजे की बाँहों में जिया
लेकिन जिन्दगी वही थी

भले ही उन क्षणों को
हमने हाथों में हाथ डाले बिताया
या आँखों में आँखें डाले जिया
लेकिन जिन्दगी वही थी

भले ही उस वक्त को
हमने उलझी अलकों को
सुलझाने में बिताया
या एक दूजे के पहलू में जिया
लेकिन जिन्दगी वही थी

उगते सूरज के साथ
चमकते चाँद के साथ
टूटते तारों के साथ
जो पल हमने साथ-साथ जिये
असल में जिन्दगी वही थी।



  [ यह कविता "कुछ अनकही ***" में प्रकाशित हो गई है। ]

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