मेरे जीवन की राहों में
लहर-लहर पर तुम छाई।
साँझ ढली मेरे जीवन में
बिच राह तुम छोड़ गई,
साथ चले थे राह-सफर में
अब राहे सुनसान हो गई।
रिश्ते सब अंजान हो गए
जब से तुम परधाम गई,
अब न मिलेंगे किसी मोड़ पर
छोड़ मुझे तुम चली गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
बहार बन कर तुम आई,
मेरे जीवन के सागर में लहर-लहर पर तुम छाई।
प्रीत तुम्हारी अमृत जैसी
गंगा जल सी सदा बही,
अधरों की मुस्कान तुम्हारी
अधरों की मुस्कान तुम्हारी
मेरे संग में सदा रही।
साँझ ढली मेरे जीवन में
बिच राह तुम छोड़ गई,
साथ चले थे राह-सफर में
अब राहे सुनसान हो गई।
सुख की सारी सुन्दर बातें
मेरे जीवन से निकल गई
सूनापन है बिना तुम्हारे
सारी खुशियाँ चली गई।
रिश्ते सब अंजान हो गए
जब से तुम परधाम गई,
अब न मिलेंगे किसी मोड़ पर
छोड़ मुझे तुम चली गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
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