मन का आँगन सूना हो गया,जीवन वैभव चला गया
सुख गया है उर का निर्झर, सहपथिक भी चला गया।
याद तुम्हारी आती रहती, दिल तड़पता रातों में
मेरे मन की पीड़ा का अब, दर्द झलकता आँखों में।
बीत गया सुखमय जीवन,अन्तस् पीड़ा भर आई
आँखों में अश्रु भर आए, याद तुम्हारी जब आई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
सुख गया है उर का निर्झर, सहपथिक भी चला गया।
साथ रह गयी यादें केवल, उजले पल सब चले गए
खुशियां निकल गई जीवन से,सुन्दर सपने टूट गए।
मेरे मन की पीड़ा का अब, दर्द झलकता आँखों में।
रीत गया संगीत प्यार का, रुठ गई कविता मन की
यादों में अब शेष रह गई, सुधियां चन्दन के वन की।
आँखों में अश्रु भर आए, याद तुम्हारी जब आई।
गीत अधूरे रह गए मेरे, मन की मृदुल कल्पना खोई
जीवन पथ पर चलते-चलते, सांझ सुहानी ढल गई।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
No comments:
Post a Comment