Monday, September 18, 2017

एक खुशनुमा तितली

जब तक रही
एक कली बन रही
अंतस को छूती रही
बिन मांगे गंध भरती रही

खुशबु बन
फ़ैलाती रही
अपनी सुवास
चहुं ओर

फूल की
पत्ती-पत्ती पर
लिखती रही
अपना नाम

जाते-जाते
खुशनुमा तितली बन
उड़ गई फूलों से
बिखेर गई अपने सारे रंग।



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

Monday, September 4, 2017

आँखें छलकती रही

तुम मेरे जीवन में एक बहार बन कर आई
तुम्हारे संग-संग मेरी जिन्दगी महकती रही।

उम्मीद की किरण लिए मैं राह देखता रहा
मन को समझाता रहा आँखें छलकती रही। 

कल रात चांदनी मेरे कमरे में उतर आई
चाँद की चाँदनी में तुम्हारी यादें मचलती रही। 

रात तुम्हारी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
तकिया भीगता रहा और यादें सिसकती रही।

इन्ही गलियों में तुम कभी साथ चली थी मेरे
चूड़ियां बेंचने वाली तुम्हारी राह देखती रही।

महीनें वर्ष बिट गए पर यादें भुलाई नहीं गई
नज़रों से दूर हो कर भी साँसों में बसी रही। 


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

Friday, September 1, 2017

सबसे प्यारी खुशबू

मैं आ गया हूँ शहर में 
छोड़ आया हूँ पीछे 
गाँव के घरों को 
गाँव की गलियों को 
गाँव के लोगो को 
लेकिन मेरे मन में 
रह गई है खेत में खड़ी 
बाजरी की बालियों की 
पकने की खुशबू 
जिसे मैं आज भी पहचानता हूँ 
दुनिया की सबसे प्यारी खुशबू 
के रूप में।