Monday, September 4, 2017

आँखें छलकती रही

तुम मेरे जीवन में एक बहार बन कर आई
तुम्हारे संग-संग मेरी जिन्दगी महकती रही।

उम्मीद की किरण लिए मैं राह देखता रहा
मन को समझाता रहा आँखें छलकती रही। 

कल रात चांदनी मेरे कमरे में उतर आई
चाँद की चाँदनी में तुम्हारी यादें मचलती रही। 

रात तुम्हारी यादों ने दिल को इस तरह छेड़ा
तकिया भीगता रहा और यादें सिसकती रही।

इन्ही गलियों में तुम कभी साथ चली थी मेरे
चूड़ियां बेंचने वाली तुम्हारी राह देखती रही।

महीनें वर्ष बिट गए पर यादें भुलाई नहीं गई
नज़रों से दूर हो कर भी साँसों में बसी रही। 


[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]

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