Monday, April 30, 2018

तुम बरखा बन चली आना।

आज बहती पुरबा ने 
हौले से मेरे कान में कहा-
क्यों उदास बैठे हो ?

समेटो बिखरे पलों को फिर से
सहेजो अपनी बीती यादों को फिर से 
याद करो संग-सफर की बातें
बेहद मीठी होती है यादें

मैं जैसे ही पुरानी यादों में डूबा
तुम चली आई बरखा बन मेरे पास
तुम्हारी यादों की रिमझिम ने
भीगा दिया मेरा तन-मन-प्राण

मैं भूल गया तन्हाई
डूबा यादों की गहराई
तुम कल फिर से आना
इसी तरह तन-मन भिगोना 
मैं धरा बन प्रतीक्षारत रहूंगा
तुम बरखा बन चली आना।


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