स्वर्गलोक तुम चली गई, मैं तो यहाँ अकेला था
मेरे आँसूं किसने देखे, मैं गम के मारे रोया था।
बिना कहे तुम चली गई, मैं तो दौड़ा आया था
अब मैं कहाँ ढूँढने जाऊं, राहों से अनजाना था।
जीवन की राहों में मैंने, तुमको मीत बनाया था
बीच राह तुम छोड़ गई, मंजिल अभी तो दूर था।
हाय मृत्यु को दया न आई, कैसे झपटा मारा था
लेकर तुम को चली गई, मेरा जीवन बिछड़ा था।
सुख - दुःख में हम साथी थे, प्यार भरा जीवन था
पल भर के एक झोंके ने,मेरा सब कुछ छीना था।
बीत गई थी आधी रात, सारा जग जब सोया था
याद तुम्हारी कर-कर मैं, बंद कमरे में रोया था।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )