नींद उचट जाती रातों में
सुख की नींद नहीं सोया
फिर मिलने की चाह लिए
मैं रातों सपनों में खोया।
दिल में बैठी प्रीत तुम्हारी
अब भी प्यार वही है तुमसे
उसमें कमी न आई कोई
मेरा प्रेम चिरंतन तुमसे।
रूप तुम्हारा इतना सोणा
अब तक आँखें नहीं भरी
बचपन से था संग हमारा
बीच राह फूटी गगरी।
याद तुम्हारी मुझे सताए
बिना तुम्हारे रहा न जाए
शाम ढले तेरी यादों में
तन्हाई संग रात बिताए।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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