Tuesday, January 7, 2020

बचपन की सौगात

मेरे पोते पोतियाँ अब
बड़े हो गये हैं 
वो कॉलेजो में पढ़ते हैं

अब वो मुझे कहानी सुनाने 
बाहर घुमने ले जाने
कागज़ की नाव बनाने 
की जिद्द नहीं करते 

अब वो मुझे कहते हैं 
चलिए दादा जी आइस्क्रीम 
खाकर आते हैं 

मेरे मना करने पर कहते हैं
ठीक है फिर कल आपके संग 
स्टारबक्स में कॉफी पीकरआते हैं 

बिजी हो कर भी 
वो मेरे लिए समय 
निकाल लेते हैं 

वो मेरा ख्याल रखते हैं 
मेरी जरूरतों को भी 
समझते हैं 

शाम ढले मेरे पास बैठ
मेरी यादों की पिटारी
खोल लेते हैं

बातों ही बातों में
वो मेरे बचपन को
ढूँढ लाते हैं

और मुझे मेरे बचपन की
सौगात एक बार फिर से
देकर चले जाते हैं।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )














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