दुल्हन का श्रृंगार सजा कर
बेटी आज ससुराल चली
पलकों में भर कर के आंसू,
बेटी माँ से गले मिली
रो-रो कर वह पूछ रही
माँ क्यों मुझको सजा मिली
छोड़ चली क्यों घर का आँगन
बचपन की जहाँ याद बसी
गले लगा माँ ने समझाया
बेटी जग की रीत यही
अपना ख़याल रखना तू बेटी
तेरा घर ससुराल वही
पास जाय पापा से बोली
कैसी घड़ी यह आज आई
पाल पोस कर बड़ा किया
मुझको दिनी आज बिदाई
बड़े प्यार से बोले पापा
बेटी दुनिया ने रीत बनाई
मैंने दिल पर पत्थर रख कर
केवल जग की रीत निभाई
खुशियाँ तेरे संग चलेगी
जिस घर भी तू जाएगी
मेरे घर की रौनक थी तू
आज कहीं खो जाएगी
तेरे बचपन की अठखेलियाँ
सदा मुझे तरसाएगी
आँखों से छलकेंगे आँसूं
जब याद तुम्हारी आएगी।
बेटी आज ससुराल चली
पलकों में भर कर के आंसू,
बेटी माँ से गले मिली
रो-रो कर वह पूछ रही
माँ क्यों मुझको सजा मिली
छोड़ चली क्यों घर का आँगन
बचपन की जहाँ याद बसी
गले लगा माँ ने समझाया
बेटी जग की रीत यही
अपना ख़याल रखना तू बेटी
तेरा घर ससुराल वही
पास जाय पापा से बोली
कैसी घड़ी यह आज आई
पाल पोस कर बड़ा किया
मुझको दिनी आज बिदाई
बड़े प्यार से बोले पापा
बेटी दुनिया ने रीत बनाई
मैंने दिल पर पत्थर रख कर
केवल जग की रीत निभाई
खुशियाँ तेरे संग चलेगी
जिस घर भी तू जाएगी
मेरे घर की रौनक थी तू
आज कहीं खो जाएगी
तेरे बचपन की अठखेलियाँ
सदा मुझे तरसाएगी
आँखों से छलकेंगे आँसूं
जब याद तुम्हारी आएगी।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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