एक टुकड़ा रोटी
आदमी को कितना
मजबूर कर देता है
घर से बाहर निकलने के लिए
चाहे अमीर हो या गरीब
चाहे सर्दी हो या गर्मी
चाहे वर्षात हो या तूफ़ान
श्रम -परिश्रम के लिए
बाहर निकलना ही होगा
कोरोना वायरस जान लेवा है
घर बहुत सुरक्षित है
फिर भी इन्शान मजबूर है
बाहर निलने के लिए
एक टुकड़ा रोटी के हाथों।
आदमी को कितना
मजबूर कर देता है
घर से बाहर निकलने के लिए
चाहे अमीर हो या गरीब
चाहे सर्दी हो या गर्मी
चाहे वर्षात हो या तूफ़ान
श्रम -परिश्रम के लिए
बाहर निकलना ही होगा
कोरोना वायरस जान लेवा है
घर बहुत सुरक्षित है
फिर भी इन्शान मजबूर है
बाहर निलने के लिए
एक टुकड़ा रोटी के हाथों।
अमीर तो कुछ दिन काम ना करे तो गुजरा कर लेगा लेकिन गरीब को रोज काम करके गुजरा करना है.
ReplyDeleteसुंदर रचना.
मेरी नई रचना- सर्वोपरि?