एक, दो, तीन नहीं
पूरे छः साल हो गए तुम्हें बिछुड़े हुए
उस दिन के बाद आज तक
नहीं देखा तुम्हारा चेहरा
लगी है तुम्हारे साथ की
एक तस्वीर कमरे में
सोचता हूँ कभी
एक तस्वीर कमरे में
सोचता हूँ कभी
हम भी साथ थे
कितना मधुर जीवन था
दिलो में रहता
एक दूजे के प्रति प्यार
और अनुराग
दो धड़कनों ने
एक सुर में गीत गया था
जीवन उस राग की
मधु लहरियों में खो गया था
आज मैं अकेला हूँ
जीवन तो जीना पडेगा
मगर नयनों में नीर भर
अब पीर को भी गाना पडेगा
प्रतिबद्धता की यह कविता
तुम्हीं को समर्पित है
ओ मेरी सहृदय !
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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ये आखिरी संदेश कैसा?
ReplyDeleteवाह.
नई रचना- सर्वोपरि?