Sunday, August 9, 2020

नौका लगी किनारे पर

नौका लगी किनारे पर
जाने को उस पार 
कुछ तो साथी चले गए
   बाकी का नंबर तैयार। 

दुनियां केवल रैन बसेरा 
वापिस सब को जाना है 
कोई आगे, कोई पीछे 
इसी नाव पर चढ़ना है।  

जीवन में जो कर्म किए 
वही साथ में जायेंगे
बाकि रिश्ते-नाते सारे
यहीं धरे रह जायेंगे।

 दो दिन का यह मेला है 
अंतिम नियति तो जाना है
नौका लगी किनारे पर
अपनी बारी चढ़ना है।

                                                              
                                                                  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )




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