वो जीत पर अट्टहास लगा रहें हैं
विपक्षी पार्टियों को वोट नहीं
देने का सबक सीखा रहें हैं।
उनके घरों में घुस कर
मार-काट कर रहें हैं
दफ्तरों को तोड़ रहें हैं।
दुकानों को लूट रहें हैं
घरों में आग लगा रहे हैं
औरतों के साथ रेप कर रहें हैं।
सैंकड़ों को मारा गया
सैकड़ों ही मर गए
बच्चों के पेट में छूरे घोंप रहें है।
चारों तरफ से चीत्कारों
की आवाजें गूंज रही है
कोई उन्हें बचाने वाला नहीं है।
युवतियाँ वैधव्य पर रो रही है
बच्चे डर कर छिप रहें हैं
बूढ़े माता-पिता छाती पीट रहें हैं।
लेकिन उनके घिनौने
चहरों पर मुस्कराहट है
सब बेखौप सीना ताने
गांवों की गलियों में घूम रहें हैं।
बदले की भावना में
उनकी संवेदनाऐं मर चुकी है
उनकी मानवता
राक्षसी भट्टी में राख बन चुकी है।
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