Thursday, July 8, 2021

तभी धड़कनें बढ़ती हैं

यदि जोश है उमंग है, तो कायनात तुम्हारी है। 
जिन्दादिली के आभाव में, जीना भी बेकार है।। 

प्यार अंधा प्यार गूंगा और प्यार बहरा होता है। 
शोख़ उमर क्या-क्या कर बैठे कौन जानता है।। 

बचपन की उम्र तो, शोखियों में निकल जाती है। 
जवानी की गाँठ लगते ही, चाल बदल जाती है।।  

आँखों में हैं स्वप्न मेरे, यादों में कविता ढलती है। 
कहीं दूर से आती आवाज़, जैसे अभी बुलाती है।। 

चाहे जितने दुःख आए, जिंदगी नहीं रुकती है। 
जवानियाँ आती रहती है, और जाती रहती है।। 

जब भी बिजली कड़कती है, हिचकी आती है। 
बात कुछ तो है कहीं, तभी धड़कनें बढ़ती हैं।। 




( यह कविता "स्मृति मेघ" में छप गई है। )

5 comments:

  1. धन्यवाद अनीता जी।

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  2. वाह!सुंदर सृजन ।

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  3. यदि जोश है उमंग है, तो कायनात तुम्हारी है।
    जिन्दादिली के आभाव में, जीना भी बेकार है।।

    वाह !! बहुत खूब....

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  4. स्वागत कामिनी जी आपका।

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