Saturday, August 7, 2021

बादल गरजे बरसे कौनी ( राजस्थानी कविता )

बादल गरजे बरसे कौनी 
बळती चालै  जबर घणी
सोनळ धोरां धधके बालू 
बळबा लागी कणी-कणी। 

राह देखता  आँख्यां रेगी 
बरसे  सूरज  लाय  घणी, 
खेता माईं   धान सूकग्यो 
कठै लुकग्यौ म्हेरो धणी।
 
तीसा मरता  डांगर मरग्या 
ताल - तैलया सुख्या पाणी, 
रिणरोही में  उड़ै बघुलिया 
कद बरसलो अम्बर पाणी। 

सावण उतर भादौ  लागग्यो 
ईन्दर  बरस्यो  कौनी  पाणी 
आवो सगळां बिरख लगावा 
जद  बरसलो  अम्बर  पाणी। 





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