Tuesday, August 20, 2024

मुझे रुला कर क्या पाओगे ?

तन्हाई का जीवन मेरा 
केवल यादों का सम्बल 
बंधा हुवा हूँ बंधन में 
इसे मिटा कर 
क्या पाओगे 

जीर्ण-जर्जर मेरी काया
धूमिल हुई जीवन आशा  
व्यथाएँ देती दस्तक
अब दर्द देकर
क्या पाओगे

सपने सारे बिखरे मेरे
आलिंगन भी रूठ गए
देखा मैंने प्रेम सभी का 
और दिखा कर 
क्या पाओगे 

सम्बोधन की सीमा टूटी 
प्यार की बुनियाद रूठी 
चौखट हाहाकार करती 
बेघर कर 
क्या पाओगे

हँस कर जीवन जीने का 
मैंने एक संकल्प लिया
अंतर की पीड़ा सहता 
मुझे रुला कर 
क्या पाओगे ?




Saturday, August 10, 2024

यह वक्त है

यह वक्त है 
खुली आँखों से 
वक्त को देखने का 
यह स्वीकार करने का 
कि 
हमने हमारी बातों 
और 
कामों को मनवाने में 
व्यर्थ ही समय गंवाया 

यदि अभी भी 
और जानना हो 
जाओ 
और 
पूछों बांग्ला देश में 
हिन्दुओं से 
कि 
उनका क्या अंजाम हुआ 
जुल्म किया है 
शैतानों ने 

क्या भूल गए 
कश्मीर को 
घाव अभी भरा नहीं है 

हमारा जनबल है अभी 
लेकिन 
हमने मजबूती से नहीं पकड़ा है 
एक-दूजे का हाथ 
एक अच्छे दिन की तरफ 
जाने के लिए 

यह गीत 
सुना जाना चाहिए 
आँखों में एक सपना 
अब 
ज्वाला बनना चाहिए। 




कुछ शेर


मेहनत करके तकदीर की लकीरें सजाओ,
हाथों की लकीरों में जीवन मत उलझाओ। 

सोने के पिंजरे से तो अपना घोंसला अच्छा,
गुलामी से सदा आजादी का जीवन अच्छा।

जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं ये समझलो,
जो भी तुमको करना है वह जल्दी करलो। 

कभी भी किसी से पाने की आशा मत रखो 
खुशियां लेनी है तो तमन्ना लुटाने की रखो। 

धन का नशा जब भी सिर पर चढ़ जाता है,
घर -परिवार, रिश्ते -नाते सब मिटा देता है । 






जीवन का दरवाजा

सीधा है जीवन का दरवाजा 
लेकिन जो वहाँ तक ले जाता है 
वह रास्ता बहुत संकरा है
कुछ लोग ही होते हैं 
जो पहुँच पाते हैं वहाँ तक 

कुछ विधर्मियों द्वारा 
राह में भटका दिए जाते हैं 
तो कुछ खुद ही राहों में 
भटक जाते हैं 
नहीं पहुँच पाते सही सलामत
उस चमकते दरवाजे तक 

कुछ ताले की चाबी 
ढूंढने में ही जीवन 
बिता देते हैं 
नहीं पहुँच पाते 
फूलों की राह चल 
उस सुनहरे दरवाजे तक 

चाहता है हर कोई पहुँचना 
मगर घूमते रह जाते 
रोशनी और अँधेरे के बीच 
जो पवित्र और पूर्ण है 
वही पहुँच पाते हैं 
उस दिव्य दरवाजे तक। 



Monday, July 29, 2024

पहचान

गांव में था 
पहचान थी 
सदा नाम से 
जाना जाता मैं 

गांव से निकला 
बह गया धारा में 
धारा से नदी 
नदी से समद्र 
समा गया मैं 

अफ़सोस 
अब महानगर में हूँ 
यहाँ होकर भी 
नहीं हूँ मैं 

अब नाम से नहीं 
मकान नम्बर से 
जाना जाता हूँ मैं 

वापिस 
कैसे जाऊँ वहाँ 
जहॉं पैदा हुआ मैं। 



Tuesday, July 23, 2024

घर के दरवाजे

गांव में बापू के  
घर के दरवाजे सदा 
खुले रहते थे 
सबके लिए 

घर आए मेहमानों 
और राहगीरों के लिए 
जिन्होनें कभी कुछ 
नहीं माँगा जीवन से 
उन गरीबों के लिए 

अजनबी दोस्तों 
और अजनबी 
भाइयों के लिए 

कहते थे 
भाई हैं हम सब 
रखते थे बड़ा दिल 
सब के लिए 

लेकिन कोई 
अपने घमंड में चूर 
प्रहार करता है 
हमारे गढ़ के दरवाजे पर 
कब्ज़ा करने के लिए 

लेकिब ख़्याल रहे 
जल्द ही वह दिन आएगा 
जब वह पछ्ताएगा 
यह धूर्ततापूर्ण विनाश 
घातक है 
अपराध है
दंड का विधान है 
सबके लिए। 

Saturday, July 20, 2024

समय सोने का नहीं है

स्वर्ग से उतर 
धरती पर आने वालो
धर्म का चोगा पहन
सहिशुण्ता का पाठ 
पढ़ने वालो 
कब तक 
अपनी जंजीरों से बँधे 
बंधुवा मजदूरों की तरह 
धरती को स्वर्ग 
बनाने का ख़्वाब 
देखते रहोगे 
उठो, जागो, दहाड़ो 
कब होगा तुम्हारा घर 
बल्कि तुम्हारा वतन ?