Sunday, December 14, 2008

तुम क्या हो?





तुम इन बच्चों की माँ
इन बहुओं की सास हो 
तुम नन्हे-मुन्नों की दादी
और मेरी  हम सफर हो
तुम मुझसे  पूछो की तुम क्या हो ?                           

सुशीला नाम से धनी 
तुम  माँ की ममता हो 
तुम करुणा की मूरत
मेरी एक अमानत हो 
तुम मुझसे पूछो की तुम क्या हो?                                       

तुम  धरा सी  धैर्यशाली
दुःख  में सुख़ का बादल हो 
तुम पुष्पलता सी कोमल
तुम मेरी पथ प्रदर्शिनी हो                         
तुम मुझसे पूछो की तुम क्या हो?      

तुम सागर सी गहरी
नील गगन से विस्तृत हो 
तुम सुखद पवन का झोंका
अमृत सी मधुमय हो 
तुम मुझसे पूछो की तुम क्या हो   ?                                    


सैन डिएगो (अमेरिका)
१४ दिसम्बर, २००८

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

2 comments:

  1. superb poem! papaji, bai, aap hamaare liye dharti par bhagwaan ki pehchaan hai....we are lucky enough!!

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  2. dadaji....tussi great ho...aur dadiji...wah wah kya baat hai!!

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