बहू ने
सास की थाली में
घी से चुपड़ी चपाती
को रखा
प्यार से कहा -
खाइए !
खाइए !
थक गई तो
लोग कहेंगे
बहू ने सास को
ठीक से नही रखा
ठीक से नही रखा
सास के
मुँह में जानेवाला ग्रास
हाथ में ही थम गया
आज अचानक
सास को वास्तविकता
का ज्ञान हो गया
कल तक
सास जो बहू को
अपने पास रखने का
दम भर रही थी
आज बहू
उसे अपने पास रखने
का एहसास दिला रही थी
शब्दों के
बोल में ही सब कुछ
बदल गया था
अनजाने में ही
शान्ति से
शान्ति से
सत्ता का हस्तांतरण
हो गया था।
कोलकत्ता
१७ फ़रवरी, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
कोलकत्ता
१७ फ़रवरी, २००९
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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