दूर तक साथ चलना था
राहे - सफ़र में हमें
पल भर भी दूर रहना
गँवारा नहीं था हमें
गँवारा नहीं था हमें
लगता था एक- दूजे के लिए
ही बने थे हम
आज वो सारे कसमें -वादे
भूल गये हम
सौ जन्मों तक साथ निभाने
का वादा किया था हमने
का वादा किया था हमने
अपने घर को स्वर्ग बनाने का
सपना देखा था हमने
सपना देखा था हमने
कल्पना के गुलसन में अनेक
फूल खिलाये थे हमने
आज मधुमास को पतझड़ मेंफूल खिलाये थे हमने
बदल लिया हमने
अपनी ही बातो पर
रोज अड़ते रहे हम
रोज अड़ते रहे हम
एक दूसरे की बातो को
रोज काटते रहे हम
रोज काटते रहे हम
अपने-अपने स्वाभिमान
को रोज टकराते रहे हम
को रोज टकराते रहे हम
एक दूसरे के दिल में
न तुम रह सके न हम
न तुम रह सके न हम
छोटी - छोटी बातो ने
जुदा कर दिया हमको
जुदा कर दिया हमको
हालात इतने बदल जायेंगे
मालूम नहीं था हमको
मालूम नहीं था हमको
कभी अपने ही रास्ते पर
फूल बिछाये थे हमने
आज उसी रास्ते पर
काँटे बिछा लिए हमने
फूल बिछाये थे हमने
आज उसी रास्ते पर
काँटे बिछा लिए हमने
खंजर से नहीं बातो से ही
दिल टूटे गए थे हमारे
जीवन के सारे ख्वाब
चूर हो गये थे हमारे
नहीं संभव अब हम फिर
इस जीवन में साथ रहेंगे
दिल टूटे गए थे हमारे
जीवन के सारे ख्वाब
चूर हो गये थे हमारे
नहीं संभव अब हम फिर
इस जीवन में साथ रहेंगे
एक आसमा के नीचे रह कर भी
हम अंजान बन रहेंगे।
हम अंजान बन रहेंगे।
कोलकाता
२४ अगस्त, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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