उम्र अब ढलने लगी
बीते समय को भूल कर
वक्त से समझौता करो
बुढापे का स्वागत करो
बुढापे का स्वागत करो
हुक्म चलाना छोड कर
हुक्म मानना सीखो अब
बच्चे जो कुछ करना चाहे उनकी हाँ में हाँ करो
बुढापे का स्वागत करो।
रुख समय का देख कर
अपने आप को बदलो अब
शांत भाव से रहना सीखो
गुस्सा करना बंद करोबुढापे का स्वागत करो
सब्जी गले या बिजली जले
दूध जले या पंखा चले
होने दो जो कुछ होता है
टोका- टोकी बंद करो
टोका- टोकी बंद करो
बुढापे का स्वागत करो
कौन सुनेगा कहा तुम्हारा
किसके पास समय है अब
प्रभु सेवा में मन लगाकर
चुप रहना स्वीकार करो
बुढापे का स्वागत करो।
बुढापे का स्वागत करो।
कोलकत्ता
२८ अगस्त, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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