आईने में अपना
चेहरा तो सभी देखते हैं
लेकिन मै जब आईना देखूँ और
चेहरा तुम्हारा साथ दिखे तो जानूँ
मयखाने में जाकर
मदहोश तो सभी होते हैं
तुम मेरी अधखुली आँखों में
मदहोश होकर दिखाओ तो जानूँ
खिलती कली पर तो
सभी नग्मे गुनगुनाते हैं
सभी नग्मे गुनगुनाते हैं
तुम मेरे नाजुक लबों पर कोई गीत
लिख कर गुनगुनाओ तो जानूँ
गुलशन में खुशबू
तो सभी फूल बिखेरते हैं
तुम मेरी जिन्दगी में प्यार की
खुशबू बिखेर कर दिखाओ तो जानूँ
दिन के उजाले में
तो सभी साथ चलते हैं
अंधकार में दीप जलाकर तुम
मेरे साथ चल कर दिखावो तो जानूँ
यौवन तो चढ़ता सूरज है
ढलती उम्र में जब तम छाये और
तुम पूनम का चाँद बन कर
आओ तो जानूँ।
कोलकाता
३० अगस्त, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
३० अगस्त, २०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
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