Monday, August 30, 2010

अभिलाषा




आईने में अपना
चेहरा तो सभी देखते हैं
लेकिन मै जब आईना देखूँ और
चेहरा तुम्हारा साथ दिखे तो जानूँ 

मयखाने में जाकर
मदहोश तो सभी होते हैं
तुम मेरी अधखुली आँखों  में
 मदहोश होकर दिखाओ तो जानूँ

  खिलती कली पर तो
 सभी नग्मे गुनगुनाते हैं
तुम मेरे नाजुक लबों पर कोई गीत
लिख कर गुनगुनाओ तो जानूँ 

गुलशन में खुशबू
तो सभी फूल बिखेरते हैं
तुम मेरी जिन्दगी में प्यार की  
खुशबू  बिखेर कर दिखाओ तो जानूँ  


दिन के उजाले में
तो सभी साथ चलते हैं
अंधकार में दीप जलाकर तुम
मेरे साथ चल कर दिखावो तो जानूँ 

यौवन तो चढ़ता सूरज है
ढलती उम्र में जब तम छाये और
तुम पूनम का चाँद बन कर
आओ तो जानूँ।

कोलकाता
३० अगस्त, २०१०  

(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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