Saturday, April 23, 2011

मजा ही कुछ और है.



सूर्योदय तक
बिस्तर में पड़े रहने से तो
खुली हवा में टहलने का
मजा ही कुछ और है

टी.वी. पर क्रिकेट मैच
 देख कर तालियाँ बजाने से तो
नुक्कड़ पर क्रिकेट मेच खेलने का
मजा ही कुछ और है


आई पोड पर
चेटिंग कर समय बिताने से तो
कुछ सर्जनात्मक कार्य करने का
मजा ही कुछ और है 

बच्चे को
डांट कर रुलाने से तो
रोते बच्चे को हँसाने का
मजा ही कुछ और है 

बुराई का बदला
बुराई कर देने से तो
भलाई कर  देने का
मजा ही कुछ और है

झूटी शान ओ शोकत में
धन बर्बाद करने से तो
किसी गरीब के आँसू पोंछने का
मजा ही कुछ और है। 

कोलकत्ता
२३ अप्रैल,२०११

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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