अब नहीं सहा जाता
सरसों बल खाती होगी
पछुवा धूल उड़ाती होगी
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
कंकरीट के जंगल में
भीड़ भरा यह सूनापन
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन
घर के पिछवाड़े बेलों में
महकने लगी होगी गंध
बाजरी के सिट्टो पर अब
लग गया होगा मकरंद
मक्की के भुट्टो पर
छाया होगा अब यौवन
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन
खेत की मेड़ों पर अब भी
खड़ी होगी मीठी बाते
खड़ी होगी मीठी बाते
खेजड़ी की छांव तले
गूँजते होंगे अलगोजे
चिड़िया चहक रही होगी आँगन
चिड़िया चहक रही होगी आँगन
आओ, गाँव लौट चले मुदित मन
सरसों बल खाती होगी
पछुवा धूल उड़ाती होगी
अंगड़ाता होगा खलिहानों में
फिर से नया सृजन
बैसाखी पर नाचा होगा
खेतोँ में फिर से योंवन
आओ, गाँव लोट चले मुदित मन।
फिर से नया सृजन
बैसाखी पर नाचा होगा
खेतोँ में फिर से योंवन
आओ, गाँव लोट चले मुदित मन।
[ यह कविता "एक नया सफर" में प्रकाशित हो गई है। ]
No comments:
Post a Comment