आज से
ठीक नौ महीने पहले
काल के क्रूर हाथों ने
तुमको छीन लिया था मुझ से
जब तक
तुम्हारा साथ था
भोर की उजली धूप की तरह
सुख लिपटा रहता था मुझे से
खुशियाँ सारी
रहती थी मेरी मुट्ठी में
हथेलियाँ छोटी पड़ जाती थी
थामने सुख
पारे की तरह फिसल गया
छूप गया है रूठ कर
वक़्त की झाड़ियों में सुख
याद आ रहा है
तुम्हारा हँसता चेहरा
गजल कहती
वो आँखे
दिवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर देख
छलक पड़ती है
मेरी आँखे।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
कोलकाता
६ अप्रैल,२०१५
ठीक नौ महीने पहले
काल के क्रूर हाथों ने
तुमको छीन लिया था मुझ से
जब तक
तुम्हारा साथ था
भोर की उजली धूप की तरह
सुख लिपटा रहता था मुझे से
खुशियाँ सारी
रहती थी मेरी मुट्ठी में
हथेलियाँ छोटी पड़ जाती थी
थामने सुख
पारे की तरह फिसल गया
छूप गया है रूठ कर
वक़्त की झाड़ियों में सुख
याद आ रहा है
तुम्हारा हँसता चेहरा
गजल कहती
वो आँखे
दिवार पर लगी
तुम्हारी तस्वीर देख
छलक पड़ती है
मेरी आँखे।
कोलकाता
६ अप्रैल,२०१५
No comments:
Post a Comment