मुझ को सारा सुख देने में
तुमने अपना सुख माना
मेरी हर पीड़ा मुश्किल को
तुमने अपना दुःख माना
जब से तुम बिछुड़ हो मुझ से
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सच्ची सेवा और लगन से
पूर्ण रूप तुम रही समर्पित
हर पल मेरा साथ निभाया
जीवन सारा कर दिया अर्पित
जब से जुदा हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की
मेरे जीवन में साथ रही
प्रीत तुम्हारी अमृत बनके
गंगा जल सी सदा बही
जब से दूर हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सुषमा-सौरभ बिखरा कर
जीवन मेरा सफल बनाया
साथ दिया सुख-दुःख में मेरा
खुशियों का संसार सजाया
जब से अलग हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
तुमने अपना सुख माना
मेरी हर पीड़ा मुश्किल को
तुमने अपना दुःख माना
जब से तुम बिछुड़ हो मुझ से
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सच्ची सेवा और लगन से
पूर्ण रूप तुम रही समर्पित
हर पल मेरा साथ निभाया
जीवन सारा कर दिया अर्पित
जब से जुदा हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
मुस्कान तुम्हारे अधरों की
मेरे जीवन में साथ रही
प्रीत तुम्हारी अमृत बनके
गंगा जल सी सदा बही
जब से दूर हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
सुषमा-सौरभ बिखरा कर
जीवन मेरा सफल बनाया
साथ दिया सुख-दुःख में मेरा
खुशियों का संसार सजाया
जब से अलग हुई हो मुझसे
खुशियाँ रूठ गई जीवन से।
[ यह कविता "कुछ अनकहीं " में छप गई है।]
No comments:
Post a Comment