Tuesday, April 18, 2017

ममता की मूरत

तुम
बदली बन बरसती रही                                                                                                                       
करती रही प्यार की बरसात
सभी पर।

तुम
फूल बन महकती रही 
बिखेरती रही प्यार की खुशबू 
सभी पर।

तुम
लोरी बन गाती रही
लहराती रही प्यार का आँचल
सभी पर।

तुम
किरण बन चमकती रही
लुटाती रही चांदनी
सभी पर।

तुम
ममता की मूरत बन झरती रही
बहाती रही स्नेह की धारा
सभी पर।



 [ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]


Monday, April 17, 2017

गाँव का जीवन

                                                                      देश के महानगरों में 
रह कर भी मुझे 
अपने गाँव की 
याद आती है। 

आलीशान मकान में 
रह कर भी मुझे 
गाँव वाले घर की 
याद आती है। 

हवाई जहाजों में
सफर करके भी मुझे 
गांव वाली बैलगाड़ी की 
  याद आती है।  

पाँच सितारा होटलों में 
ठहर कर भी मुझे 
खेत वाले झोंपड़े की
याद आती है। 

स्वादिष्ट खाना 
खाकर भी मुझे 
माँ के हाथ की रोटी की 
याद आती है। 


                                                                         ऐशो आराम की  
                                                                   जिंदगी जी कर भी मुझे     

गाँव के जीवन की 
याद आती है।



( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )

Saturday, April 8, 2017

पचास ऋतु चक्रों को समर्पित

पचास ऋतु चक्रों को समर्पित
जीवन के संग-सफर में
आज हर एक मोड़ पर
मुझे तुम्हारी सबसे ज्यादा
जरुरत है।

लेकिन मैं यह भी जानता हूँ
कि तुम अब इस जीवन में
मुझे कभी नहीं मिलोगी।

मैं चाह कर भी
तुम्हारी कोई झलक
तुम्हारी कोई आवाज
तुम्हारी कोई खबर
नहीं ले पाऊंगा।

फिर भी मैं तुम्हें
हर मौसम
हर महीने
हर सप्ताह
हर दिन
हर घड़ी
हर पल
हर क्षण
अपने जीवन सफर में जीवूंगा।

Friday, April 7, 2017

मेरी आँखों में सावन-भादो उत्तर गया

मेरे जीवन में कोई उल्लास नहीं रहा
           मेरे जीवन में कोई मधुमास नहीं रहा
                   मेरे जीवन का स्वर्णिम सूरज डूब गया
                          मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरे जीवन में खुशियां की सौगात नहीं रही
         मेरे जीवन में पायल की झनकार नहीं रही
                   मेरे जीवन का मंगल गान बिसर गया
                         मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरी पलकों में सुनहरा स्वपन नहीं रहा
        मेरे होठों पर प्यार भरा गीत नहीं रहा
                मेरा हमसफर जीवन राह में बिछुड़ गया
                        मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।


मेरे जीवन में अधरों का हास नहीं रहा
        मेरे जीवन में गीतों का सार नहीं रहा                                     
                 मेरे जीवन से सुख का कारवाँ गुजर गया
                          मेरी आँखों में सावन-भादो उतर गया।                       



  [ यह कविता 'कुछ अनकही ***"में प्रकाशित हो गई है ]