एक कलख है मन में मेरे
अंत समय में पास नहीं था
मीलों लम्बा सफर किया पर
तुम से बातें कर न सका था।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
लिपट-लिपट कर मैं रोया था
जीवन भर तक त्रास रहेगी
यम से तुमको छिन न सका था।
आँखों में अश्रु जल भर कर
मरघट तक मैं साथ गया था
पंच तत्व में विलिन हुई तुम
मैं खाली हाथ लौट पड़ा था।
सारी खुशियाँ मिट गई मेरी
सुख का जीवन रित गया था
जीवन का अनमोल खजाना
मेरे हाथों से निकल गया था।
( यह कविता "कुछ अनकही ***"में छप गई है। )
अंत समय में पास नहीं था
मीलों लम्बा सफर किया पर
तुम से बातें कर न सका था।
देख तुम्हारी नश्वर देह को
लिपट-लिपट कर मैं रोया था
जीवन भर तक त्रास रहेगी
यम से तुमको छिन न सका था।
आँखों में अश्रु जल भर कर
मरघट तक मैं साथ गया था
पंच तत्व में विलिन हुई तुम
मैं खाली हाथ लौट पड़ा था।
सारी खुशियाँ मिट गई मेरी
सुख का जीवन रित गया था
जीवन का अनमोल खजाना
मेरे हाथों से निकल गया था।
( यह कविता "कुछ अनकही ***"में छप गई है। )
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