Thursday, October 5, 2017

तुम कहाँ हो ?

दामिनि दमकी, बरखा बरसी
काली घटा छाई, तुम कहाँ हो ?

मानसून गया, विजय पर्व आया
रावण भी दहा, तुम कहाँ हो ?

करवा चौथ, मेहन्दी लगे हाथ
निकला चाँद, तुम कहाँ हों ?

ज्योति पर्व आया, दीप जले
खुशहाली छाई, तुम कहाँ हो ?

सर्द मौसम, सुलगता अलाव
थरथराती देह, तुम कहाँ हो ?

बसंत बहार, होली का त्योंहार
रंगों की बौछार, तुम कहाँ हो ?

गीतों की रमझोल, झूले पड़े
आई गणगौर, तुम कहाँ हो ?



[ यह कविता "कुछ अनकही ***" पुस्तक में प्रकाशित हो गई है ]


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