बस्ते के बोझ तले बचपन बीत गया
मस्ती भरी सुहानी नादाँ उम्र चली गई।
तेल,नून,लकड़ी के भाव पूछता रह गया
जीवन से झुंझती मस्त जवानी चली गई।
बुढ़ापा क्या आया सब कुछ चला गया
दरिया सरीखी दिल की रवानी चली गई।
चूड़ियाँ, बिन्दी, मंगलसुत्र सब हट गया
औरतों के सुहाग की निशानी चली गई।
पढ़-लिख कर बेटा शहर चला गया
बाप के बुढ़ापा की उम्मीद चली गई।
गांव का जवाँ फ़िल्मी गीतों में रीझ गया
मेघ मल्हार, कजली की तानें चली गई।
गांव में खाली पड़ा मकान बिक गया
गांव की जमीं से घर की निशां चली गई।
मस्ती भरी सुहानी नादाँ उम्र चली गई।
तेल,नून,लकड़ी के भाव पूछता रह गया
जीवन से झुंझती मस्त जवानी चली गई।
बुढ़ापा क्या आया सब कुछ चला गया
दरिया सरीखी दिल की रवानी चली गई।
चूड़ियाँ, बिन्दी, मंगलसुत्र सब हट गया
औरतों के सुहाग की निशानी चली गई।
पढ़-लिख कर बेटा शहर चला गया
बाप के बुढ़ापा की उम्मीद चली गई।
गांव का जवाँ फ़िल्मी गीतों में रीझ गया
मेघ मल्हार, कजली की तानें चली गई।
गांव में खाली पड़ा मकान बिक गया
गांव की जमीं से घर की निशां चली गई।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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