Saturday, November 3, 2018

जन्म दिन का आना

हर वर्ष की तरह
जन्म दिन ने आकर
मेरा दरवाजा खटखटाया 

मैंने स्वागत के साथ 
उसे अपने पास बैठाया
उसने प्यार से पूछा ---- 
कैसा रहा तुम्हारा साल ?
क्या किया इस साल ?

मैं क्या जबाब देता 
साल का एक-एक दिन तो 
वैसे ही निकल गया था 
पता ही नहीं चला कि
कब साल लगा और कब बीता 

मैंने झुकी नज़रों से कहा -
इस साल तो कुछ नहीं किया 
लेकिन अगली साल
जरूर कुछ करूंगा 

उसने अनमने भाव से कहा ---
जीवन के बहत्तर साल बीत गए
बुढ़ापा भी दस्तक देने लग गया
अब तो सम्भल जाओ

जो कुछ करना है करलो
कब जीवन की सांझ ढल जाएगी
पता भी नहीं चलेगा।


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