हर वर्ष की तरह
उसने अनमने भाव से कहा ---
जीवन के बहत्तर साल बीत गए
बुढ़ापा भी दस्तक देने लग गया
अब तो सम्भल जाओ
जो कुछ करना है करलो
कब जीवन की सांझ ढल जाएगी
पता भी नहीं चलेगा।
जन्म दिन ने आकर
मेरा दरवाजा खटखटाया
मेरा दरवाजा खटखटाया
मैंने स्वागत के साथ
उसे अपने पास बैठाया
उसने प्यार से पूछा ----
उसने प्यार से पूछा ----
कैसा रहा तुम्हारा साल ?
क्या किया इस साल ?
मैं क्या जबाब देता
साल का एक-एक दिन तो
वैसे ही निकल गया था
पता ही नहीं चला कि
कब साल लगा और कब बीता
कब साल लगा और कब बीता
मैंने झुकी नज़रों से कहा -
इस साल तो कुछ नहीं किया
इस साल तो कुछ नहीं किया
लेकिन अगली साल
जरूर कुछ करूंगा
जरूर कुछ करूंगा
उसने अनमने भाव से कहा ---
जीवन के बहत्तर साल बीत गए
बुढ़ापा भी दस्तक देने लग गया
अब तो सम्भल जाओ
जो कुछ करना है करलो
कब जीवन की सांझ ढल जाएगी
पता भी नहीं चलेगा।
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