कोलकाता का
विक्टोरिया मेमोरियल गार्डन,
सुबह का सुहाना समय
मन्द-मन्द बहती बयार।
मैं दोस्तों के संग
रोज की तरह मॉर्निंग वॉक पर,
पगडण्डी के दोनों ओर लगी है
रंग-बिरंगे सुन्दर फूलों की कतारें।
मैं चाहूँ तो हाथ बढ़ा कर
तोड़ सकता हूँ इन फ़ूलों को
मगर मैं नहीं तोड़ता।
कल किसी ने एक डाल से
गुलाब का फूल तोड़ लिया था,
मन्द-मन्द बहती बयार।
मैं दोस्तों के संग
रोज की तरह मॉर्निंग वॉक पर,
पगडण्डी के दोनों ओर लगी है
रंग-बिरंगे सुन्दर फूलों की कतारें।
मैं चाहूँ तो हाथ बढ़ा कर
तोड़ सकता हूँ इन फ़ूलों को
मगर मैं नहीं तोड़ता।
कल किसी ने एक डाल से
गुलाब का फूल तोड़ लिया था,
फूल तो मौन साधे
व्यथा को सहता रहा।
मगर इसी एक बात पर
कल पूरे विक्टोरिया में
वह डाल बहुत बदनाम हुई,
कल पूरे विक्टोरिया में
वह डाल बहुत बदनाम हुई,
दिन भर में किसी ने आँख उठा कर
उस डाल की ओर देखा तक नहीं।
( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )
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