Monday, December 2, 2019

एक पेड़ का ढहना

कल एक पेड़ ढह गया 
नए ज़माने की हवा 
उसे रास नहीं आई

बूढ़े पेड़ को तो 
एक न एक दिन 
ढहना ही था 
 
मगर खेद यह है 
कि पेड़ की छाँव तले 
पली नयी पौध 
नए ज़माने की हवा पाकर  
ज्यादा ही इठलाने 
खिलखिलाने और 
झूमने लग गई 

तूफ़ान झेलना पड़ा 
अकेले खड़े पेड़ को 
बूढ़े कन्धे नहीं सह सके 
हवा के थपेड़ों को 

रात के अँधेरे में 
पेड़ ने किया था चीत्कार 
नहीं सूना किसी ने 

सुबह देखा 
पेड़ धराशाही हो चुका था
बीच राह अपनी यात्रा को 
विराम दे चुका था।


( भावभीनी  श्रद्धांजलि मेरे सहपाठी कमल तोषनीवाल को, जिसने असमय ही मौत को गले लगा लिया।  )


( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





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