Wednesday, December 11, 2019

चाय जरुरत भर

जीवन की तमाम
चिंताओं से मुक्त हो कर
जीवन संगीनी के संग बैठ 
चाय की चुस्कियों के बीच
बीते पलों को फिर से जीना
पुरानी यादों को फिर से बाँटना
मेरे जीवन का अब सपना बन गया। 

जीवन संगिनी की अब केवल 
यादें ही बची है मेरे पास 
बदल गया है अब
मेरी जिन्दगी का अर्थ
अब अकेले बैठ कर चाय पीने से 
मन में नहीं घुलती कोई मिठास
चाय अब केवल एक
जरुरत भर रह गई है



  ( यह कविता "स्मृति मेघ" में प्रकाशित हो गई है। )





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