चिन्ता छोड़ो और खुश रहो
शान्ति-सदभाव बढ़ाते चलो
दुखियारों के दर्द मिटा कर
सुधा - श्रोत बहते चलो।
चाहे कितना कठिन पथ हो
हँसते और मुस्कराते चलो
नफरत की दीवार हटा कर
सबको गले लगाते चलो।
अधिकारों की अंधी दौड़ में
अपना कर्तब्य निभाते चलो
परोपकार का जीवन जी कर
खुशियाँ सब में बाँटते चलो।
सारा जग हो रहा प्रदूषित
पर्यायवरण को बचाते चलो
स्वच्छता का हाथ थाम कर
प्रकृति की रक्षा करते चलो।
मानवता की जय करने को
संयम-समता के संग चलो
जीवन से आडम्बर हटा कर
धरा को स्वर्ग बनाते चलो।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
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