देता पेड़ सभी को छाँया
जो भी इनके पास आया
नहीं भेद है इनके मन में
कोई नहीं इनको पराया।
झूमझूम कर ये लहराते
मानसून के बादल लाते
सूरज का ये ताप मिटाते
प्राण वायु हमको दे जाते।
लेकिन आज खड़े ब्यापारी
लेकर हाथों में सब आरी
शहर गांव में कहीं देखलो
शहर गांव में कहीं देखलो
पेड़ों के कटने की तैयारी।
आओ हम संकल्प करें
पर्यायवरण की रक्षा करें
पेड़ों को कटने नहीं देंगें
जन-जन में यह बात करें।
पेड़ों को हम मित्र बनाए
नए-नए अब पेड़ लगाए
प्रदूषण चिंता का विषय है
पेड़ लगा कर दूर भगाए।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
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