Sunday, May 16, 2021

बंगाल में चुनाव आया

बंगाल में चुनाव आया 
रेलियों ने शोर मचाया,
मौत ने तांडव दिखाया 
झोली भर आँसू लाया। 

गोलियाँ चली लोग मरे 
लाठियों पर वोट गिरे,
गुण्डों से सब लोग डरे 
विपक्षी नेता खूब मरे। 

सर फूटे ओ घर टूटे 
गली-गली बम फूटे,
साड़ियां-ब्लाउज फटे 
रहा-सहा सब लुटे। 

घरों से भी बेघर हुए 
आबरू के तार हुए, 
जान को बचाते हुए 
भागने को लाचार हुए। 

जम कर लूटपाट हुई 
शवों पर राजनीति हुई, 
प्रजातंत्र की हार हुई 
बाहुबल की जीत हुई। 







Saturday, May 15, 2021

कोरोना से कैसा डर

कोरोना से कैसा डर,आया है चला जाएगा 
तू सकारात्मकता से सोच कर के तो देख।  

कोरोना को हम सब,  साथ मिल हराएँगे 
तू एक बार कदम आगे बढ़ा कर तो देख। 

छंट जायेंगे बादल, संशय और जड़ता के 
तू एक बार मन में साहस भर के तो देख। 

कट जाएगी रात, सवेरा निश्चिन्त आएगा 
तू एक  बार खिड़की खोल कर तो देख। 

आसमान को छू लेना कोई मुश्किल नहीं 
तू बस एक बार हाथ उठा कर के तो देख। 

बैठते थे हम जहाँ कॉफी पीने साथ -साथ 
मैं आज वहाँ जा रहा हूँ, तू भी आ के देख। 

पुरानी यादों का पिटारा फिर खुल जाएगा 
तू एक बार चाय पर बुला कर के तो देख। 

ठहाकों की महफ़िल जल्द ही फिर सजेगी 
तू एक बार फिर से आवाज देकर तो देख। 




( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )

Friday, May 14, 2021

बिना तुम्हारे क्या जीना

बिना तुम्हारे क्या जीना
अब जीवन में सार नहीं,
सफर सुहाना टूट गया
अब रुचता शृंगार नहीं।  

साथ तुम्हारा छूट गया 
अब कोई संगीत नहीं, 
जीवन वाद्य बिखर गया 
अब कोई झंकार नहीं। 

बिन साथी के जीवन कैसा
बिना तान के राग नहीं,
दिल पर गहरी चोट लगी 
पर होती है टंकार नहीं। 

तुम से ही तो था जीवन 
अब तो कोई साथ नहीं,
बिना तुम्हारे संग-सफर 
अब जीना स्वीकार नहीं। 

कितने सपने हमने देखे
अब तो कोई चाह नहीं, 
भाग्य जगा था संग तुम्हारे 
अब कोई अधिकार नहीं। 



Wednesday, May 5, 2021

यह दिन तो सकुशल गुजर गया

दिन तो सकुशल गुजर गया 
रात बस अब ढलने को है,
जीवन-सफर तो रीत गया
अब नए सफर की तैयारी है। 

सब कुछ तो कर लिया 
फिर भी प्यास बुझी नही,
यह आदिकाल से बनी रही
आजीवन तो मिटी नहीं। 

इच्छा तो बढ़ती जाती है
वो कभी नहीं घटती प्यारे,
पर ये साँसें तो सीमित हैं
वे कभी नहीं बढ़तीं प्यारे।

रूप-चाँदनी दो दिन की
क्षणभंगुर यह जीवन है,
जो आया है वह जायेगा
कोई भी नहीं अनश्वर है। 

अब आवाहित को आना है
इस पंछी को उड़ जाना है,
और कंचन जैसी काया को
कुछ क्षण में जल जाना है। 

( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )







Sunday, May 2, 2021

समय बहुत बुरा आया

समय बहुत बुरा आया,  घर में रहने को मजबूर 
घर के दीपक बुझ रहें, सपने हो रहे सबके चूर। 

                                         छोटा सा एक कोरोना वायरस, निकला बड़ा मगरूर
                                          यह मौत का सौदागर निकला, ले जाता दुनिया से दूर। 
                                       
आतंक इसका इतना फैला, विश्व  में हो गया मशहूर
इससे यदि बचना है, प्रतिरोधक समता बढ़ाएँ जरूर। 

                                               एक वायरस ने तोड़ा, पूरी मानव जाति का गुरुर
                                               हाथ मिलाना, गले लगाना,  इसको नहीं है मंजूर।             

इससे यदि बचना चाहो, सबको रहना होगा दूर- दूर         
मुँह पर मास्क लगाओ सभी, बना इसे जीवन दस्तूर।

                                              बार-बार हाथों को धोना, करते रहना सब जरूर                                                                                                       निरोधक क्षमता वाले ही, बचा पाएंगे अपना नूर।  
                                              

( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )