समय बहुत बुरा आया, घर में रहने को मजबूर
घर के दीपक बुझ रहें, सपने हो रहे सबके चूर।
छोटा सा एक कोरोना वायरस, निकला बड़ा मगरूर
यह मौत का सौदागर निकला, ले जाता दुनिया से दूर।
आतंक इसका इतना फैला, विश्व में हो गया मशहूर
इससे यदि बचना है, प्रतिरोधक समता बढ़ाएँ जरूर।
एक वायरस ने तोड़ा, पूरी मानव जाति का गुरुर
हाथ मिलाना, गले लगाना, इसको नहीं है मंजूर।
इससे यदि बचना चाहो, सबको रहना होगा दूर- दूर
मुँह पर मास्क लगाओ सभी, बना इसे जीवन दस्तूर।
बार-बार हाथों को धोना, करते रहना सब जरूर निरोधक क्षमता वाले ही, बचा पाएंगे अपना नूर।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
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