कोरोना से कैसा डर,आया है चला जाएगा
तू सकारात्मकता से सोच कर के तो देख।
कोरोना को हम सब, साथ मिल हराएँगे
तू एक बार कदम आगे बढ़ा कर तो देख।
छंट जायेंगे बादल, संशय और जड़ता के
तू एक बार मन में साहस भर के तो देख।
कट जाएगी रात, सवेरा निश्चिन्त आएगा
तू एक बार खिड़की खोल कर तो देख।
आसमान को छू लेना कोई मुश्किल नहीं
तू बस एक बार हाथ उठा कर के तो देख।
बैठते थे हम जहाँ कॉफी पीने साथ -साथ
मैं आज वहाँ जा रहा हूँ, तू भी आ के देख।
पुरानी यादों का पिटारा फिर खुल जाएगा
तू एक बार चाय पर बुला कर के तो देख।
ठहाकों की महफ़िल जल्द ही फिर सजेगी
तू एक बार फिर से आवाज देकर तो देख।
( यह कविता स्मृति मेघ में प्रकाशित हो गई है। )
वाह, बहुत सुंदर।
ReplyDeleteधन्यवाद शिवम् कुमार जी।
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