Wednesday, July 21, 2010

रैलियाँ

 


कोलकाता और रैलियाँ  
दोनों का चोली-दामन
का साथ रहता है  

कोलकाता है तो रैलियाँ हैं
रैलियाँ है तो समझो यही 
कोलकाता  है

यहां कोई भी कभी भी
रैली निकाल
सकता है 

 रैलियाँ का बड़ा आयोजन
राजनैतिक पार्टियां
ज्यादा करती हैं

इनकी रैलियाँ कोलकाता  का
 चक्का जाम करने में
 सक्षम भी होती हैं

  स्त्रियों के गोद में बच्चे
   पुरुषो के कन्धों पर थैले
     हाथो में झंडे
      पहचान है रैलियों की

महानगर की सडकों पर
अजगर की तरह सरकती है
ये रैलियाँ

इनके पीछे-पीछे
चलती रहती हैं

सायरन बजाती एम्बुलेंस 
जिसमे कोई मरणासन्न
रोगी सोया रहता है

घंटी बजाती दमकल
 जिसे कहीं लगी हुयी आग को
 बुझाने पहुँचना है 

प्रसूता जिसे अविलम्ब
सहायता के लिए
अस्पताल जाना है

लेकिन रैलियों की भीड़
इन सबकी नहीं
सुनती

वो गला फाड़-फाड़
कर नारे लगाती
 रहती है

जिनका अर्थ वो
 स्वयं भी नहीं
जानती हैं

   .इन्कलाब जिंदाबाद
        जिंदाबाद  जिंदाबाद !   



कोलकत्ता
८ सितम्बर,  २०१०

(यह कविता  "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

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