मुर्गा बांग लगाये उससे
पहले चिड़िया उठ जाती
सूरज के उगने से पहले
आकर मुझे जगा जाती
बैठ मुंडेर के ऊपर ,उड़ जाये चिड़िया फुर्र
चीं -चीं कर आँगन में आती
घर में सबके मन को भाती,
फुदक फुदक कर उडती जाती
बड़े मजे से गाना गाती
चोंच में लेकर चुग्गा, उड़ जाये चिड़िया फुर्र
जंगल - जंगल उड़ उड़ जाती
मुँह में तिनका दबा के लाती,
लगा- लगा कर एक एक तिनका
अपना सुन्दर नीड़ बनाती
नन्ही नन्ही आँख नचा,उड़ जाये चिड़िया फुर्र
खेतों -खलिहानों में जाती
चुन -चुन करके दाना लाती
ची-चीं करते निज बच्चो के
डाल चोंच में चुग्गा खिलाती
सुना के लोरी बच्चो को,उड़ जाये चिड़िया फुर्र
दिन भर चिड़िया उडती रहती
थकने का वो नाम न लेती
हमें सीख वो दे कर जाती
श्रम करके चढ़ जावो चोटी
लक्ष्य आसमां का देकर, उड़ जाये चिड़िया फुर्र |
गीता भवन
२५ जुलाई ,२०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
जंगल - जंगल उड़ उड़ जाती
ReplyDeleteमुँह में तिनका दबा के लाती .
लगा लगा कर एक एक तिनका
अपना सुन्दर नीड़ बनाती ..
चिड़िया के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश पिरोया है आपने ... अनुपम रचना है ....