Monday, July 26, 2010

उड़ जाये चिड़िया फुर्र




मुर्गा बांग लगाये उससे
पहले चिड़िया उठ जाती
सूरज के उगने से पहले
आकर मुझे जगा जाती
बैठ मुंडेर के ऊपर ,उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

  चीं -चीं कर आँगन में आती   
घर में सबके मन  को भाती,
फुदक फुदक कर उडती जाती
बड़े मजे से गाना गाती
चोंच में लेकर चुग्गा, उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

 जंगल - जंगल उड़  उड़ जाती   
मुँह में  तिनका दबा  के लाती,
  लगा- लगा कर एक एक तिनका
अपना  सुन्दर  नीड़ बनाती   
नन्ही नन्ही आँख नचा,उड़ जाये चिड़िया फुर्र 

खेतों -खलिहानों में  जाती
चुन -चुन करके दाना लाती
ची-चीं  करते निज बच्चो के
डाल चोंच में चुग्गा खिलाती
सुना के लोरी बच्चो को,उड़ जाये चिड़िया फुर्र  

दिन भर चिड़िया उडती रहती
थकने  का वो  नाम  न   लेती
हमें  सीख   वो दे   कर जाती
श्रम  करके  चढ़  जावो चोटी
 लक्ष्य आसमां का देकर, उड़ जाये चिड़िया फुर्र |



गीता भवन
२५  जुलाई ,२०१०
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )

1 comment:

  1. जंगल - जंगल उड़ उड़ जाती
    मुँह में तिनका दबा के लाती .
    लगा लगा कर एक एक तिनका
    अपना सुन्दर नीड़ बनाती ..


    चिड़िया के माध्यम से बहुत सुन्दर सन्देश पिरोया है आपने ... अनुपम रचना है ....

    ReplyDelete