एक बच्चा
जख्मों से भरा हुआ
मैले कपड़े, नंगे पाँव
माथे में जूँओ को खुजलाता
बासी जूठे और गंदे खाने को
दोनों हाथो से बिचेरते
हुए खा रहा है
हुए खा रहा है
जिसे अभी -अभी
पार्टी ख़त्म होने पर
मेजपोशों से उठा कर
सड़क पर लाकर फेंका है
पार्टी ख़त्म होने पर
मेजपोशों से उठा कर
सड़क पर लाकर फेंका है
पास ही
एक कुते का पिल्ला
उसी खाने को पूरे जोर से
बिचेरते हुए खा रहा है
दोनों अपनी अपनी
सुधा मिटाने में लगे हुए हैं
बीच-बीच में दोनों एक
की तरफ देख लेते हैं
डरावनी रात और
पेट की भूख ने
दोनों को
पेट की भूख ने
दोनों को
एक सूत्र में बाँध दिया है।
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
(यह कविता "कुमकुम के छींटे" नामक पुस्तक में प्रकाशित है )
बहुत सुन्दर एंव गहन अभिव्यक्ति
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